पद्मावती विवाद और राजपूत ###########

*पद्मावती विवाद और राजपूत
राजस्‍थान के राजपुतों में भयंकर गरीबी है। शायद जाटों से भी ज्‍यादा। ३० प्रतिशत के आसपास बीपीएल होंगे। काश कि कभी ये रोजगार के लिए सड़कों पर उतरते। पर नहीं, उतरेंगे तो कभी गैंगस्‍टर आनंदपाल के लिए और कभी पद्मावती के लिए।
........
लेकिन ये तो आजकल हर जाति में हो रहा है। *हर कोई अस्मिता के लिए सड़कों पर उतर रहा है, मुर्ति के लिए उतर रहा है पर रोजगार के लिए नहीं। इसका मूल कारण कोई एक जाति नहीं बल्कि देश में एक क्रान्तिकारी आन्‍दोलन की अनुपस्थिति है जिसके कारण तमाम प्रतिक्रियावादी जनता को गलत रास्‍ते पर ले जाने में सफल हो रहे हैं।*
*शहीदे आजम भगत सिंह* ने कहा था “जब गतिरोध की स्थिति लोगों को अपने शिकंजे में जकड़ लेती है तो किसी भी प्रकार की तब्दीली से वे हिचकिचाते हैं। इस जड़ता और निष्क्रियता को तोड़ने के लिये एक क्रान्तिकारी स्पिरिट पैदा करने की ज़रूरत होती है, अन्यथा पतन और बर्बादी का वातावरण छा जाता है।… लोगों को गुमराह करने वाली प्रतिक्रियावादी शक्तियाँ जनता को ग़लत रास्ते पर ले जाने में सफल हो जाती हैं। इससे इन्सान की प्रगति रुक जाती है और उसमें गतिरोध आ जाता है। इस परिस्थिति को बदलने के लिये यह ज़रूरी है कि क्रान्ति की स्पिरिट ताज़ा की जाये, ताकि इन्सानियत की रूह में हरकत पैदा हो।”
इसलिए आज भगतसिंह के रास्‍ते पर चलने की जरूरत है। कभी राजपूतों, कभी जाटों, कभी मराठों को सड़कों पर हिंसा करते देखकर गालियां देकर शांत होकर बैठने से बेहतर है कि उनके सामने ये साफ किया जाये कि उनका दुश्‍मन कौन है और तब शायद वो पद्मावती के लिए नहीं बल्कि शिक्षा, स्‍वास्‍थ्‍य, रोजगार के लिए सड़कों पर उतरें।

नौकरियां कहां है, नौजवान कहां हैं, क्रांति फिल्म का वो गाना कहां हैं

नौकरियां कहां है, नौजवान कहां हैं, क्रांति फिल्म का वो गाना कहां हैं
ऐसी ख़बरें आ रही हैं कि सरकार पांच साल से ख़ाली पड़े पद समाप्त करने जा रही हैं। यह साफ नहीं है कि लगातार पांच साल से ख़ाली पड़े पदों की संख्या कितनी है। अवव्ल तो इन पर भर्ती होनी चाहिए थी मगर जब नौजवान हिन्दू मुस्लिम डिबेट में हिस्सा ले ही रहे हैं तो फिर चिन्ता की क्या बात। यह आत्मविश्वास ही है कि जिस समय रोज़गार बहस का मुद्दा बना हुआ है उस समय यह ख़बर आई है।
वित्त मंत्रालय ने 16 जनवरी को अलग अलग मंत्रालयों और विभागों को ऐसे निर्देश भेज दिए हैं। विभाग प्रमुखों से कहा गया है कि ऐसे पदों की पहचान करें और जल्द से जल्द रिपोर्ट सौंपे।
इस ख़बर में नौकरी की तैयारी कर रहे युवाओं का दिल धड़का दिया है। अब ये नौजवान क्या करेंगे, कोई इनकी क्यों नहीं सुनता, इन नौजवानों ने आख़िर क्या ग़लती कर दी ? बहुत सी परीक्षाएं हो चुकी हैं मगर ज्वाइनिंग नहीं हो रही है। 30 जनवरी को यूपी में तीन तीन भर्तियां रद्द हो गईं। लड़के उदास मायूस हैं। रो रहे हैं। उनके साथ ऐसा क्यों हो रहा है।
जिस 16 जनवरी को वित्त मंत्रालय ने तमाम विभागों को निर्देश दिए कि पांच साल से ख़ाली पड़े पदों को समाप्त कर दिया जाए, उसी 16 जनवरी को एक और ख़बर छपी थी। यह ख़बर भी वित्त मंत्रालय की रिपोर्ट के आधार पर थी कि 1 मार्च 2016 तक चार लाख से अधिक पद ख़ाली पड़े थे। ये सारे पद केंद्र सरकार के विभागों से संबंधित हैं।
16 जनवरी के इकोनोमिक टाइम्स में रिपोर्ट छपी है कि 1 मार्च 2016 तक ग्रुप ए के 15, 284 पद ख़ाली थे। ग्रुब बी के 49, 740 पद ख़ाली पड़े थे। ग्रुप सी के 3, 21, 418 पद ख़ाली थे। ग्रुप सी के इन पदों के लिए लाखों की संख्या में मेरे नौजवान दोस्त आस लगाए बैठे हैं।
आज इतने बड़े देश में इन नौजवानों के लिए बात करने वाला एक नेता नहीं है। नौकरियां कम हो रही हैं। नौजवान दिखाई नहीं दे रहे हैं। मुझे क्रांति का गाना याद आ रहा है। वो जवानी जवानी नहीं जिसकी कोई कहानी न हो। हिन्दू मुस्लिम टॉपिक ने नौजवानों को बौद्धिक ग़ुलाम बना लिया है। नौकरियां न देने का यह सबसे अच्छा समय है। नौजवानों को हिन्दू मुस्लिम टापिक की गोली दे दो, वो अपनी जवानी बिना किसी कहानी के काट देगा।
पिछले साल नवंबर में खादी ग्रामोद्योग आयोग ने 300 से अधिक की भर्ती निकाली। फार्म के लिए 1200 रुपये लिए और फीस लेने के कुछ दिन के भीतर ही भर्ती की प्रक्रिया अस्थायी रूप से स्थगित कर दी। ढाई महीने हो गए, उसका कुछ अता पता नहीं है। सोचिए खादी ग्रामोद्योग फार्म भरने के 1200 रुपये ले रहा है। सोचिए कि ये लोगों को सवाल नहीं लगता है।
2016-17 में प्रधानमंत्री रोज़गार प्रोत्साह योजना लांच हुई थी। एक साल में ही इसका बजट आधा किए जाने के संकेत है। ऐसा बिजनेस स्टैंडर्ड के रिपोर्टर सोमेश झा ने लिखा है। इस योजना के तहत अगर कोई कंपनी अपने कर्मचारी को EPFO, EPS में पंजीकृत कराती है तो सरकार तीन साल तक कंपनी का 8.33 प्रतिशत हिस्सा ख़ुद भरेगी। इससे लाभान्वित कर्मचारी वही होंगे जिनकी सैलरी 15000 रुपये प्रति माह तक ही होगी। सरकार ने इस योजना के लिए 1000 करोड़ का प्रावधान किया था।
अखबार लिखता है कि दिसंबर 2017 तक EPFO को मात्र 2 अरब रुपये ही मिले थे। उसने श्रम मंत्रालय को पत्र लिखकर 500 करोड़ की मांग की है। इसका मतलब यह है कि कंपनियों ने पंजीकृत तो करा दिया है मगर कंपनियों को हिस्सा नहीं मिल रहा है। 2017-18 के लिए 700 करोड़ की ही ज़रूरत पड़ी है।
इसका एक और मतलब है कि EPFO के रिकार्ड पर कम ही कर्मचारी जुड़े हैं। बिजनेस स्टैंडर्ड लिखता है कि जुलाई 2017 तक 9000 कंपनियों के 3, 61,024 लाख कर्मचारियों ने EPFO का लाभ लिया। उसके बाद अगस्त से दिसंबर 2017 के बीच 28,661 कंपनियों के 18 लाख कर्मचारियों ने इस योजना का लाभ लिया।
इस तरह कुल संख्या करीब 22 लाख के करीब बैठती है। हर महीने 3 लाख 66 हज़ार नए कर्मचारी EPFO से जुड़ते हैं। आप कह सकते हैं कि ये रोज़गार का आंकड़ा दर्शाता है। मगर कई बार कंपनियां सरकार की योजना का लाभ लेने के लिए उन कर्मचारियों को इस योजना से जोड़ती हैं जो पहले से काम कर रहे हैं। इसलिए दावे से नहीं कह सकते हैं कि यह नया रोज़गार है।
इस पोस्ट को कम से कम दस लाख नौजवानों तक पहुंचा दें।

सरकार है या मौत की फैक्ट्री..?

असली पप्पू तो ये चाय वाला निकला 9 महीने बाद पता चला पप्पू फेल हो गया हैं. गरीबी मिटा देने की बातें सिर्फ बातें हैं, जो दौलत के भूखे है...